कुंडलिया.....जय माँ शारदा!
कुंडलिया"
चहक रही है वह धरा, जिसपर नहीं शकून
सत्ता का संधान कर, बहा रही है खून
बहा रही है खून, प्रसून जहाँ फुलता था
सुंदर छटा बिखेर, सूर्य प्रतिदिन उगता था
'गौतम' ले ले गंध, चमेली महक रही
कुदरत की सौगात, मयूरी चहक रही।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी
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