कुसुमित कुण्डलिनी ----
------ खिड़की -----
खिड़की खोल दिमाग की , आने दे सद्ज्ञान ।
तेरे अंदर है छुपा , कोई सृजक महान ।।
कोई सृजक महान , लगा मत उसको झिड़की ।
आने को बेताब , खोल के रखना खिड़की ।।
खिड़की से वह झाँकता , दूर खड़ा आनंद ।
चलकर जब आगे गया , दिखा काल का फंद ।।
दिखा काल का फंद , सुनाये किसको दिल की ।
मृगतृष्णा का खेल , रचाये बैरन खिड़की ।।
खिड़की को अनिवार्य रख , जब हो घर निर्माण ।
आने को अंदर हवा , जीवन पथ के त्राण ।।
जीवन पथ के त्राण , देख मत जाये बिचकी ।
सुख शोभा अनुरूप , रखो घर पर दो खिड़की ।।
खिड़की टूटा ही मिला , पर्दे गायब आज ।
इनसे क्या है दुश्मनी , कैसा गुंडाराज ।।
कैसा गुंडाराज , जेब में छाई कड़की ।
डरते हैं हम यार , चुरा ले जाये खिड़की ।।
-------- रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह ( छ. ग. )
कुसुमित कुण्डलिनी ----
25/08/2021
------ सोकर -----
सोकर उठते देर से , गया समय सब खास ।
ब्रह्म जागरण की घड़ी , छूटा भोर उजास ।।
छूटा भोर उजास , नहीं पल आये खोकर ।
यूँ ही जाये बीत , दिवस सब खोता सोकर ।।
सोकर भी हूँ देखता , खत्म न होता दर्द ।
पीड़ा से तन है भरा , मौसम भी है सर्द ।।
मौसम भी है सर्द , बिताते दिन हम रोकर ।
मुश्किल में है जान , रहें कब तक यूँ सोकर ।।
सोकर भी है जागती , माँ के प्यारे नैन ।
बच्चों को देखे बिना , पाती कब है चैन ।
पाती कब है चैन , झेलती लाखों ठोकर ।
सिरहाने पर नींद , तड़पती है माँ सोकर ।।
सोकर सब दिन खो दिया , रहा रात भर जाग ।
कैसे पूरे हो भला , सपनों की वह आग ।।
सपनों की वह आग , पड़े है आज धरोहर ।
पछताते हैं स्वप्न , रहे क्यों अब तक सोकर ।।
-------- रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह ( छ. ग. )
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