*********** *ग़ज़ल***********
वज़्न-1222×4
मुनाफा देखकर यारी करेंगे ठान लेते हैं
यतीमों को सगा अपना यकीनन मान लेते हैं
किनारा उनसे कर लेते ग़ुमां पर जो रहें अक्सर
जरा सी बात करते ही उन्हें पहचान लेते हैं
हमारी ज़िल्लतों में भी रहें हम बादशाही में
नहीं झुकते किसी का भी नहीं एहसान लेते हैं
अमीरों में बहुत से ऐब मक्कारी लहू में जो
दिखाते हैं ग़ुमां जिसको यूँ कमतर जान लेते हैं
उन्हें तो चाहिए रिश्वत जिन्हें है भूख ज़र की यूँ
बरक्कत हो न हो रिश्वत मगर नादान लेते हैं
कई बहशी दरिन्दों को जो सम़झाइस अगर देंगे
वो एवज़ में करें बलवा यूँ सीना तान लेते हैं
******
पुनीत प्रदीप ध्रुव भोपाली भोपाल मध्यप्रदेश,26/08/2021
*******
बहुत शानदार कविराज
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार कविराज,👍👍
जवाब देंहटाएं