कुसुमित कुण्डलिनी ----
27/08/2021
------ जलकर -----
जलकर भी अब क्या मिला , केवल गहन तनाव ।
आज नहीं तो कल करें , मुझसे भी दुर्भाव ।।
मुझसे भी दुर्भाव , खत्म होता हूँ गलकर ।
रहता कहाँ वजूद , जिया है जो भी जलकर ।।
जलकर दीपक सोचता , देता बहुत प्रकाश ।
मेरा जीवन श्रेष्ठ है , होता नहीं निराश ।।
होता नहीं निराश , नहीं जलता हूँ छलकर ।
जीवन से संतुष्ट , हमेशा हूँ मैं जलकर ।।
जलकर लंका के महल , ध्वस्त हुए विस्तार ।
एक भूल लंकेश के , उजड़ गया संसार ।।
उजड़ गया संसार , जगत जननी को हरकर ।
दिए आत्म श्री राम , दम्भ मद अर्पित जलकर ।।
जलकर भी हम जी रहे , नहीं मिले आराम ।
हर कोई है खोदता , राख बिके क्या दाम ।।
राख बिके क्या दाम , कमाये पैसे छलकर ।
लुप्त आज अस्तित्व , गये है जो भी जलकर ।।
-------- रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह ( छ. ग. )
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