भादौं छठ या ललही छठ पूजा का महत्व
भाद्रपद मास की छठी तिथि को हर वर्ष भादौ छठ या ललही छठ का त्यौहार मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे हलषष्ठी,हरछठ या ललही छठ आदि के नाम से भी जाना जाता है। महिलाएं पुत्र प्राप्ति एवं उनकी सलामती के लिए इस कठिन व्रत का पालन कर छठ मैया का पूजन करती हैं। उनका मानना है इस व्रत को रखने से पुत्र सदा स्वस्थ एवं दीर्घायु रहते हैं। ललही छठ को हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पहले मनाया जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बलराम जयंती के रूप में भी मनाते हैं। इस बार ललही छठ का पर्व 28 अगस्त शनिवार को मनाया जाएगा।
कैसे करें पूजा??
इस व्रत में महुआ के दातून से दांत साफ किया जाता है। दिन में अथवा शाम के समय इस पूजा के लिए आँगन में एक छोटा सा सगरा (तालाब) व हरछठ मिट्टी की वेदी बनाई जाती है। हरछठ में झरबेरी, कुश और पलाश(ढाक) की डालियां एक साथ बांधी जाती हैं और उनको इस मिट्टी की वेदी में गाड़ दिया जाता है। इसके बाद वहां पर चौक बनाया जाता है। तत्पश्चात हरछठ को वहीं पर लगा देते हैं। सबसे पहले कच्चे जनेऊ का सूत हरछठ को पहनाते हैं फिर फल आदि का प्रसाद चढ़ाने के बाद कथा सुनी जाती है।
*हलषष्ठी पूजा की प्रचलित कथा-१*
मथुरा के राजा कंस को जब पता चला कि उनके बहन-बहनोई वासुदेव और देवकी की संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगी तो उसने उन्हें कारागार में डाल दिया। जेल में एक एक करके जन्मी वासुदेव और देवकी की सभी 6 संतानों का कंस ने कारागार में ही वध कर डाला। देवकी को जब सातवां पुत्र होना था तब उसकी रक्षा के लिए नारद मुनि ने उन्हें हलपष्ठी माता का व्रत करने की सलाह दी। जिससे उनका पुत्र कंस के कोप से बच सके और सुरक्षित हो जाए। देवकी ने हलषष्ठी व्रत किया जिसके प्रभाव से भगवान ने योगमाना से कहकर देवकी के गर्भ में पल रहे बच्चे को वासुदेव की बड़ी रानी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। जिससे कंस को धोखा हो गया और उसने समझा कि देवकी का सातवां पुत्र जिंदा नहीं है उधर रोहिणी के गर्भ से भगवान बलराम का जन्म हुआ। इसके बाद देवकी के गर्भ से आठवें पुत्र के रूप में श्री कृष्ण का जन्म हुआ। इस तरह से देवकी के हल छठी व्रत करने से उनके दोनों पुत्रों की रक्षा हुई।
हलषष्ठी की प्रचलित कथा-२
व्रत करने वाली महिलाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक पोलिंग थी। वह नगर में घूम-घूम कर दूध दही बेचती थी,प्रभु कृपा से वह मां बनने वाली थी और उसका प्रसव काल भी पास आ रहा था। एक ओर तो वह पैसों के लिए व्याकुल थी वहीं दूसरी ओर उसे अपने दूध दही बेचने की भी चिंता थी। उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो दूध दही यूं ही पड़ा रह जाएगा। यह सोचकर वह दूध-दही बेचने के लिए निकल पड़ी किन्तु कुछ ही दूर पहुंचने पर उसे अगहनी प्रसव पीड़ा होनी शुरू हो गई। वह एक झाड़ की आड़ में गई और वहां पर उसने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चा स्वस्थ था। उसके बाद वह नवजात को वहीं छोड़कर पास के गांव में दूध-दही बेचने चली गई। संयोग से उस दिन हरछठ थी, गाय भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बता कर उसने सीधे साधे गांव वालों को बेंच दिया। उधर झाड़ की आड़ के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके पास ही वहां एक किसान खेत में हल जोत रहा था।बैल के बिगड़ने से किसान का हल नवजात बालक को लग गया और उसकी मौत हो गई। कुछ देर बाद ग्वालिन वापस आई तो बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसको समझते देर नहीं लगी,कि यह तब उसके पाप के किए की ही सजा है। आज हलषष्ठी है। उसने गांव की महिलाओं का धर्म भ्रष्ट किया है। झूठ बोलकर गाय के दूध को भैंस का दूध बताकर बेचनें से उसको ये सजा मिली है।
दरअसल हलखष्ठी के व्रत में गाय का दूध एवं उस से बनी चीजें नहीं खाई जाती हैं। अतः मुझे वापस लौटकर यह सब बातें गांव की महिलाओं को बताकर इसका प्रायश्चित करना चाहिए। ग्वालिन पुनः उसी गांव में गई और गली-गली घूम-घूम कर रो-रो कर अपनी गलती के लिए माफी मांगने लगी। तब महिलाओं ने उस पर रहम खा कर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया। इसके बाद सभी स्त्रियां उसके साथ उसके पुत्र को देखने के लिए खेत में पहुंची तो हैरान रह गई वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में मिला तभी से उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान ही समझा और झूठ न बोलने का संकल्प लिया।
*इस व्रत में क्या खाएं क्या न खाएं ? ये भी जानें*
इस दिन भगवान बलराम जी का जन्म उत्सव भी मनाया जाता है,इसलिए खेत में उगे हुए या जोत कर उगाए गए किसी भी अनाज,फल और सब्जियों को इस व्रत में नहीं खाया जाता है। क्योंकि "हल" बलराम जी का अस्त्र है। इसके साथ ही गाय का दूध दही या उससे बनी अन्य किसी भी वस्तु को खाने की इस व्रत में मनाही होती है।
ललही छठ व्रत व पूजा करने वाली महिलाएं इस दिन तालाब में उगे पसही/तिन्नी का चावल/पचहर के चावल खा कर अपना व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं भैंस का दूध दही व घी का प्रयोग करती हैं। फल,मेवा इत्यादि का भी प्रयोग कर सकती हैं।
आलेख :
डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
संपर्क : 9415350596
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