*दोहे*
कोटर नैना अधखुले ,चंचल तीक्ष्ण कटार।
अनराए अल साए से , करैं वार पै वार।।
सुभगा अनंगे गोरकी , मृगणी जस यहु नैन।
हिलत मिलत लजरात री!, बिना मिलै कंह चैन।।
श्वेत स्याम रंग चक्षु द्वै, ता पर डोरा लाल।
ताकैं ताड़ै बेंधते , करते हिया हलाल।।
कजरारे नैना सुघर , भौंहैं वक्र ललाम।
सुभग सुलोचनि भामिनी , मानौ मूर्त सकाम।।
प्रखर दीक्षित
फर्रुखाबाद
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