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अर्चना सिंह

पर्यावरण
ईश्वर का वरदान यह धरती मां, 
बहती इसी पर निर्मल पावन गंगा मां 
हिमालय की गोद है पिता सा संबल, 
एसी सुंदर धरती का दमन निरंतर मत पूछो ।।
शाम की ओ नर्म धूप सुबह कि वह खुली किरण कभी चंचल शोख़ हवा कभी महकी पवन ,
फूलों के शुवास से महका तन मन
 फिर झंझावातो का ऐसा बवंडर मत पूछो।।
हमने अपनी प्यारी धरती को स्वयं ही रौंदा, 
स्वयं ही बर्बाद किया अपना घरौंदा, 
स्वयं ही लूट ली धरती की अस्मिता करके सौदा, 
कभी सजती थी रचाती थी स्वयंवर मत पूछो।।तुम्हारी फाइलों में गांव का मौसम गुलाबी है, 
तुम्हारे आंकड़े झूठे बातें किताबी हैं ,
तन्हा तन्हा होंगी शहरों की शामें भी, 
किसने भोका धरती में खंजर मत पूछो।।
अमन का हाल-चाल मत पूछो, 
आज नाजुक सवाल मत पूछो ,
लम्हा लम्हा जहर में डूबा है, 
कैसे सवरेंगा पर्यावरण का मंजर मत पूछो।। 
                                     अर्चना सिंह
                                     महाराजगंज

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