कुसुमित कुण्डलिनी ----
------ गुमसुम-----
गुमसुम बैठा आजकल , कल का वह बेपीर ।
जाने कब कैसे लगी , उसके दिल पर तीर ।।
उसके दिल पर तीर , लुप्त हैं सारे अंजुम ।
कैसे हो अब दूर , छूट जाये मन गुमसुम ।।
गुमसुम सी है जिंदगी , बैठी आज उदास ।
कल तक थी जो रौनकें , आज नहीं उल्लास ।।
आज नहीं उल्लास , रहा अपने में ही गुम ।
लगता जीवन शून्य , दूर कब हो यह गुमसुम ।।
गुमसुम मुरझाये हुए , कैसे रहते मित्र ।
आसपास बिखराइए , आनंदी शुभ इत्र ।।
आनंदी शुभ इत्र , गूँज जायेगा छुम छुम ।
उठ चल आगे देख , छोड़कर बाना गुमसुम ।।
गुमसुम पंथ गँवार का , तजो रहो खुशहाल ।
ये जो है जीवन मिला , करना तुझे कमाल ।।
करना तुझे कमाल , दबाकर भागा है दुम ।
भरकर चलो उमंग , नहीं रहना अब गुमसुम ।।
-------- रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह ( छ. ग. )
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