अनजान शहर में
भारत की बेटी
तय करती है सफर
नितांत अकेले,,,,
नहीं है कोई साथी उसका
जो दे उसका साथ
अनजान शहर में....!
फिर भी रखती है कदम
भय की दिवार को दरकिनार कर
उसे पहुंँचना है गंतव्य तक!
करने हैं स्वप्न साकार
जो उसनेे देखें हैं अपने लिए
अनजान शहर में....!
रहती है अपनों से दूर
अपनाती है तौर तरीके
ठीक वैसे ही,,,
पहनती है कोट ,बूट और कैप
ढालती है स्वयं को
वहां के परिवेश में
भव्य इमारतों के बीच से
निकली है वो बेधड़क
नहीं कम दिखती वो....
लगती है हूबहू अनजान
शहर की लड़कियों की तरह
बढ़ गए हैं कदम उसके
अनजान शहर में.....!
सुनीता सुवेंद्र सिंह
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