विधा - घनाक्षरी
🪔 *मोहन*🪔
भीतर मोहन बैठा ,
दिल को तो वो ही पैठा ,
उनकी सुंदर छवि ,
सुरत निहारिए ।
बंसी धुन में मैं डोलूँ ,
राज वहीं सारे खोलूँ ,
संभालते हमें सदा ,
उनको पुकारिए ।
माया फैली चारों ओर ,
वो देते जीवन भोर ,
बाहर भटकता क्यूँ,
हिय में बसाइए ।
आँखों में ही तेरा नूर ,
मत जा हृद से दूर ,
तू ही मेरी धड़कन ,
मत तड़पाइए ।
तेरे पैरों की मैं धूल ,
तेरा प्यारा मैं हूँ फूल ,
करुणा चाहत की है ,
उसे बरसाइए ।
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*व्यंजना आनंद " मिथ्या "*✍🏻
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