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नूतन लाल साहू

आज हलषष्ठी है

प्रेम प्रेम सब कोई कहें
प्रेम करें न कोय
प्रेम ऐसा करना चाहिए
जैसे दही मक्खन बन जाती है।
संतान के खातिर मातृ शक्ति
महुआ के पतरी में
पसहर भात खाती है
बिना हल चले भुइयां से
चावल और छैः जात के भांजी
जुगाड़ कर लाती है।
भइंस के दूध भइंस के दही
मन में अटल रखती है विश्वास
लइका मन के खातिर माता
रहती है कमरछठ उपवास।
कितना सुंदर कितना प्यारा
त्याग तपस्या की अदभुत नजारा
प्राकृतिक छटा से आच्छादित
सगरी की पूजा करती है।
पूत हो तुम कपूत नही
मां का तकदीर बनें रहना
सबसे पहले तुम बेटा हो
मां की त्याग को मत भूलना
लइका मन के खातिर माता
रहती है कमरछठ उपवास।
सगरी में चढ़ाते हैं बेल की पाती
दूध नरियर और कपूर के बाती
पंडित सुनाते है कथा
सगरी की होती है पूजा आरती
लइका मन के खातिर माता
रहती है कमरछठ उपवास।

नूतन लाल साहू

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