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डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*नीति-वचन*
     नीति-वचन-2
मंदिर-मस्जिद अरु गुरुद्वारा।
धरम नहीं गिरजाघर सारा।।
    चंदन-तिलक धरम नहिं भाषा।
    नाहीं धरम अंध- बिस्वासा ।।
तीरथ करउ भले बहु जाई।
तदपि न सुचिता मन महँ आई।।
   पर उपकार सरिस नहिं धरमा।
   धरम न हो बस पूजन-करमा।।
जीव-जंतु-मानव प्रति प्रेमा।
जे जन करहिं अहर्निसि नेमा।।
   तिनहिं क जानउ परम सुधर्मी।
   सेवा-प्रेमी होंय सुकर्मी ।।
जाति-बरन नहिं भेद-बिभेदा।
जग-कल्यान कहहिं सभ बेदा।।
    छुआछूत नहिं धरम-सुभाऊ।
    निरबल-अबल न कबहुँ सताऊ।।
सत्य-अहिंसा-धरम-कुदारी।
खोदि क जीवन-खेत-कियारी।।
    जे जन सात्विक फसल उगावैं।
     अंतकाल ते प्रभु-पद पावहिं। 
दोहा-धन्य-धन्य अस लोग जग,धर्म जासु उपकार।
        कृपा-पात्र प्रभु कै बनैं,जायँ सिंधु भव-पार।।
                  डॉ0 हरि नाथ मिश्र
                   9919446372

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