*मधुरालय*
*सुरभित आसव मधुरालय का*15
अंड-पिंड-स्वेतज-स्थावर,
व्यापक सबमें आसव है।
जड़-चेतन,चर-अचर-जगत की-
अति दृढ़ धुरी बनाई है।।
पुरा काल से काल अद्यतन,
बस आसव ही आसव है।
यह तो है अनमोल धुरी वह-
महि जिसपे टिक पाई है।।
सुरगण-मुनिगण-ऋषिगण सबने,
ब्रह्म-महत्ता दी इसको।
जीवन-कोष-केंद्र यह कहता-
क्या अच्छाई-बुराई है??
जब तक आसव-द्रव है तन में,
समझो,प्राण-अमिय रहता ।
प्राण निकलना ध्रुव है तन से-
अमृत सोच न जाई है।।
आसव-सोच अनित्य-अमिट है,
तन जाए,शुभ सोच रहे।
यदि आसव सी सोच रहे तो-
समझो, अमर रहाई है।।
निर्गुण-सगुण का अंतर मिटता,
जब चाखो सुरभित आसव।
उभय बीच की खाई की भी-
इसी ने की पटाई है।।
ब्रह्म एक है,ब्रह्म सकल है,
ब्रह्म बिना ब्रह्मांड नहीं।
आसव-सरिता बहती रहती-
करती जग-कुशलाई है।।
बिना प्रमाण प्रमाणित आसव,
की शुचिता सुर-कंठ बहे।
सुर-आसव की शुचिता ही तो-
जग में शुचिता लाई है।।
शिव ने विष को कंठ लगाकर,
आसव-अमृत-धार किया।
विष-दुख गले लगा ही जग को-
मिलती शुभ सुखदाई है।।
आसव शुभकर,आसव हितकर,
शुभ चिंतन,सुख-साधन यह।
इसी ने सुरभित स्वाद चखाकर-
सुख-दुख किया मिलाई है।।
ब्रह्म-स्वरूप पेय इस आसव,
का निवास मधुरालय है।
जाकर जहाँ परम सुख मिलता-
भव-ज्वाला जल जाई है।।
मधुर मोद, आमोद-मधुरता,
सुरभित सुरभि-सुगंधित सुर।
मधुरालय की सबने मिलकर-
अद्भुत छटा सजाई है।।
निसि-वासर सुर-देव विराजें,
ब्रह्मनाद-उदघोष सतत।
परमानंद सकल सुख देता-
अनुपम प्रभु-प्रभुताई है।।
अति प्रणम्य-रमणीय-सुरम्या,
छवि मधुरालय शोभित है।
छवि से यदि बहु-बहु छवि मिलती-
तदपि यही छवि भाई है।।
एक घूँट बस दे दे साक़ी,
आसव की सुधि आई है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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