नव गीत
गीत गाता चल
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जग में आया हैं बंदे,
गीत खुशी के गाता चल।
मात-पिता की सेवा से,
मिले चारों धाम का फल।।
यह धरती माता अपनी,
जो पावन देवालय है।
गीत खुशी के गाता चल,
हर एक पत्थर हिमालय है।।
आन-बान-शान निराली,
कण-कण में मोती चमकें।
गीत खुशी के गाता चल,
इधर-उधर तू मत भटके।।
पौधारोपण हरियाली,
जन-जन के मन भाती है।
गीत खुशी के गाता चल,
वसुंधरा अन्न खिलाती है।।
संस्कृतियों का अपनापन,
मनभावन प्यार लुटाता।
गीत खुशी के गाता चल,
सुख-दु:ख तो आता रहता।।
©®
रामबाबू शर्मा,राजस्थानी,दौसा(राज.)
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🙏वंदना🙏
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मुर्गा बोला,हुआ सवेरा,
चिं-चिं करती चिड़िया।
माँ को नमन करो भैया,
घर-घर फैले खुशियां।।
सबसे पहले वो उठती,
सब के बाद ही सोती।
दिन भर प्यार लुटाती,
इसलिए बरकत होती।।
नित्य सुबह करें वंदना,
हम माँ के उपकारो की।
आओ सब मिलकर बोले,
भारत के संस्कारों की।।
🙏🙏🙏🙏🙏
©©
रामबाबू शर्मा, राजस्थानी,दौसा(राज.)
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