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ऊषा जैन

*मेरी बिटिया*

मेरी बिटिया मेरी गुड़िया, 
मेरे आँगन की वह चिड़िया।  
कोयल सी उसकी मीठी बोलीं, 
है जादू कि जैसे  वह पुड़िया। 

मेरी आंखों का वह नूर हैं, 
मेरे घर का वह गरूर हैं। 
उसकी प्यारी प्यारी बातें, 
जैसे गर्मी की हो बरसातें। 

जब वह मेरी गोद में आई, 
मैं माँ बन कर मुस्कुराई। 
लगाके उसको अंक से अपनें, 
खुशी से फूली मैं न समाई। 

जब से वह बड़ीं हो गईं हैं, 
मेरी तो पदवी ही बदल गईं हैं। 
अब जैसे मैं उसकी बेटी हूंँ, 
 और वह मेरी माँ बन गईं हैं। 

यह न करो माँ वह न करो, 
माँ सेहत का अपनीं ध्यान करो, 
जो बातें बचपन में मैं कहतीं थीं, 
अब वे  सारी बातें मुझसे कहतीं हैं। 

दिन-रात वो हमारें ही खातिर, 
अक्सर परेशान सी रहतीं हैं। 
लफ्जों से कुछ नहीं कहतीं , 
पर आँखों से चिंता झलकती हैं। 

माँ, बाप की असली दौलत, 
बेटियाँ ही कहलातीं हैं। 
पुण्य उदय होता हैं उनका, 
जब बेटी घर में आतीं हैं। 

*मेरी कलम से*🖋
*ऊषा जैन कोलकाता*

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