प्रेमा के प्रेमिल सृजन __
विधा-कुण्डलिया
सृजन शब्द-तर्पण
तर्पण अर्पण जो करें, पाते हर आनंद ।
सुख होते संतति सभी, जीवन हो मकरंद ।।
जीवन हो मकरंद, यही तो शान बढ़ाते ।
होती है पहचान, सदा ये गोद खिलाते ।।
कहती प्रेमा आज , पितर कर जीवन अर्पण ।
देते हैं आशीष, करें सेवा अरु तर्पण ।।1!!
तर्पण करना चाहिए, अर्पण करके दान ।
पढ़ा लिखा हमको सदा, देते अपनी जान ।।
देते अपनी जान , करें न्योछावर जानो ।
रहते है कुर्बान, त्याग करते ये मानो ।।
कहती प्रेमा आज , दिखाते जीवन दर्पण ।
जीवन सुखमय भोग, पितर का करते तर्पण।।2!!
तर्पण पितरों का करें, सजता जीवन रोज ।
देते आशीर्वाद हैं , पितर करायें भोज ।।
पितर करायें भोज, मिले जीवन सुख सारे ।
करें नेह बरसात, यही तो जग में प्यारे ।।
कहती प्रेमा आज, नेह का करते वर्षण ।
दिए हमें वरदान, करें जीवन में तर्पण ।।3!!
----योगिता चौरसिया "प्रेमा"
-------मंडला म.प्र.
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