*स्वतंत्र कि मधुमय कुंडलिया*
*धड़कन*
------------------------------------
धड़कन हिय की जब तलक , तब तक होते प्राण ।
जीवन का संकेत यह , श्वासें बनी प्रमाण ।।
श्वासें बनी प्रमाण , सतत है जीवन जानों ।
जन्म- मृत्यु का भेद , मनुज इसको पहचानो ।
कह स्वतंत्र यह बात , करे आधारित जीवन ।
तन का है यह अंश , जिसे सब कहते धड़कन ।।
धड़कन बढ़ती है तभी , जब हो पिय का साथ ।
आँखों से जब बात कर , पकड़ लिए पिय हाथ ।
पकड़ लिए पिय हाथ , बात तब धड़कन करती ।
धक - धक जैसै रेल , तेज यह आहें भरती ।
कह स्वतंत्र यह बात , प्रेम होता सच्चा धन ।
भावों का संसार , बसाए अन्तर धड़कन ।।
धड़कन यदि थम जाय तो , समझो जीवन अंत ।
समय गति का भान ये , कहते हैं सब संत ।
कहते हैं सब संत , ध्यान दे इसे सहेजो ।
चिंता शोक विकार , कभी इस तक मत भेजो ।
कह स्वतंत्र यह बात , करो मत ऐसे अनबन ।
पछताओगे बाद , रुके जब हिय की धड़कन ।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र*
*प्रयागराज*
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें