"कुंडलिया"
झूम रहें हैं खेत सब, हरित धान ऋतु संग।
लहर रहीं हैं बालियाँ, लेकर स्वर्णिम रंग।
लेकर स्वर्णिम रंग, अंग प्रिय ढंग निराला।
कुदरत की सौगात, मधुर रस मादक प्याला।
'गौतम' हर्ष सिवान, किसान किला चूम रहे।
कर्म दिलाए मान, चौखट जिया झूम रहे।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी
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