,,,,,,,,,,,,,,,बगावत नहीं,,,,,,,,,,,,,,
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दायरों में सिमटने की चाहत नहीं ।
आसमां चूम लेना बगावत नहीं ।।
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चुभ रही पंखुरी ,फूल की अब उन्हें ।
जिनको काँटों पे चलने की आदत नहीं
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जंग लड़ते. हुए हम फना हो गये ।
आप कहते हैं कोई हताहत नहीं ।।
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ग़मज़दा ख्वाब ढोते रहे उम्र भर ।
मौत के बाद भी कोई राहत नहीं ।।
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हो रही बारिशें पत्थरों की उधर ।
इस तरफ कोई शीशा सलामत नहीं ।।
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जंगलों में भी दहशत है सैय्याद की ।
और शहरों में जाँ की हिफाजत नहीं ।।
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शिवशंकर तिवारी ।
छत्तीसगढ़ ।
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