सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रखर दीक्षित

लघुकथा

*घर जमाई*

    छैल बिहारी मिश्र जी बैठक में बैठे-बैठे किसी सोच विचार में निमग्न थे कि तभी मोबाइल सक्रिय हुआ, घंटी सुनते  ही फोन ओ के किया.......
"हैलो कौन...?
" मिश्र जी नमस्कार.... मैं आपका भावी समधी राघव राम दुबे " दूसरे सिरे से उत्तर मिला।
औपचारिक बातचीत के बाद मुद्दे की बात राघव राम ने रखी---" भाईसाहब मेरी बेटी रीमा ने यहीं शहर में एक इंजीनियरिंग कालेज में जाब कर ली है ।आपके छोटे शहर में मेरी बेटी शेटल नहीं हो पाएगी और रही बात ससुराल जाने की तो महीने में एक दो दिन आती जाती रहेगी।"
"आपने और रीमा ने सौरभ बेटे से बात की। यह तो सम्भव नहीं है।बेटे का दाम्पत्य जीवन कलह भरा हो जाएगा। आप सौरभ से बात कर लें" मिश्र जी ने भारी मन से बात पूरी की।
छैल बिहारी ने सारी बात सौरभ को बताई। बेटा परेशान हो गया। रीमा को फोन मिलाया---" हैलो रीमा मैं यह शादी नही कर सकता। परोक्ष रुप से मुझे घर जमाई बनना स्वीकार नहीं। जरुरी नहीं प्रेम विवाह में परिणीत हो। दाम्पत्य जीवन शर्तो पर नहीं वरन् विश्वास पर आधारित होता है।"

*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879