सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सुखमिला अग्रवाल भूमिजा

यह संजा गीत आजकल लुप्तप्राय हो चुके हैं। 
श्राद्ध पक्ष में शाम को घर में दिवार पर गोबर से संजा बनातें हैं..  रंगों  व फूलों से सजातें हैं.. 
गीत गातें हैं.. 

*स्वरचित संजा गीत *

काजल गजरा टीका लेकर आओ,
चूडी बिंदी झूमका लेकर आओ,
लाकर मेरी संजा को पहनाओ,
लाकर मेरी प्यारी संजा को पहनाओ,
काजल गजरा टीका लेकर आओ… 

संजा का श्रंगार गोरी आरती करे,
संजा का श्रंगार बहना रोली करे,
संजा को सजाकर शरमा वो पडे,
काजल गजरा टीका लेकर आओ,
लाकर प्यारी संजा को पहनाओ,
लाकर मेरी संजा को पहनाओ…

संजा का श्रृंगार ननदी बिंदु करे,
संजा का श्रृंगार सारी सखियाँ करे,
करके श्रृंगार वो तो हँस हँस पडे,
काजल गजरा टीका लेकर आओ,
लाकर मेरी संजा को सजाओ,
लाकर प्यारी संजा को सजाओ… 

********************
सुखमिला अग्रवाल भूमिजा 
स्वरचित मौलिक 
सर्वाधिकार सुरक्षित 
मुम्बई

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879