*स्वतंत्र की मधुमय कुण्डलिया*
*राही*
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राही बाधा दूर कर , चलता अपनी राह।
लक्ष्य निरंतर प्राप्त कर, प्राप्त करे वह वाह।
प्राप्त करे वह वाह , जगत में नाम कमाए।
कंटक करके फूल , सुगम वह राह बनाए।
कह स्वतंत्र यह बात , भावना पथ ही चाही।
पावन मन की राह , चला यह मन का राही।।
राही पर्वत पर चढ़े , दुर्गम अति आधार।
अटल रहे विश्वास तो , पाए खुशी अपार।
पाए खुशी अपार , उच्च चोटी पर जाए।
झंडा लेकर हाथ , शिखर पर वह लहराए।
कह स्वतंत्र यह बात , कठिनता जिसकी माही।
पाए वो ही लक्ष्य , कहें जिसको सब राही।।
राही का जब साथ हो , राह लगे आसान।
प्रियतम सम बहु प्यार से , मिलता है प्रतिमान।
मिलता है प्रतिमान , धैर्य जब साथ निभाए।
दृढ़ होता विश्वास , लक्ष्य तक यह पहुँचाए।
कह स्वतंत्र यह बात , मनुज सच्चा उत्साही।
सुखद बसे संसार , प्रेम मधु पथ पर राही।।
*मधु शंखधर 'स्वतंत्र'*
*प्रयागराज*
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