"कुंडलिया"
निकला होता म्यान से, यदि उदगार कृपाण।
दिखते नहीं जहान में, निर्मित शस्त्र पहाड़।
निर्मित शस्त्र पहाड़, दहाड़ दुखद हित नाशी।
काबा और मीनार, सतो गुण पोषक काशी।
'गौतम' गुण की खान, कनक तप तप कर पिघला।
बना दिव्य परिधान, स्वर्ण मृद कण से निकला।।
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मंच को प्रस्तुत मुक्तक, मापनी-2222 2222 2222 222......जय माँ शारदा!
"मुक्तक"
नभ में पानी थल में पानी, पानी में क्या पानी है।
इश्क मुश्क से पूर जवानी सुंदर काया पानी है।
उतरा पानी सूखी नदियाँ बीती रात निशानी री-
जल ही जीवन कहता है जग सेवाती धन पानी है।।
महातम मिश्र 'गौतम' गोरखपुरी
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