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सौरभ प्रभात

*कह-मुकरी*
*दिनांक - 24.09.2021*

11.
दिन भर मुझसे नेह लड़ाये।
चूमे चाटे और बतियाये।
पर भागे ज्यों छोड़ूँ ढ़िल्ला।
ऐ सखि साजन? ना री पिल्ला।।
12.
आगे पीछे वो मँडराता।
जाऊँ जिधर वहीं आ जाता।
बाँहें डाल करे गलबैयाँ।
हे सखि साजन? नहीं ततैया।।
13.
देख उसे मैं यूँ ललचाऊँ।
सोचूँ ठौर उसी में पाऊँ।
जी चाहे बस ले लूँ बोसा।
ऐ सखि साजन? नहीं समोसा।।
14.
छेड़ा उसने अनुपम राग।
संग झूम के आया फाग।
उसका हर सुर लगता न्यारा।
क्या सखि साजन? ना इकतारा।।
15.
छैल छबीला बड़ा गठीला।
सुंदर प्यारा लगे सजीला।
जाने किसका है वो पूत।
हा! सखि साजन? ना शहतूत।।
16.
गूढ़ ज्ञान की बातें बोले।
वाणी अंतस मिश्री घोले।
प्रीति भाव ही उसका पंथ।
क्या सखि साजन? नहीं महंथ।।
17.
घर बैठे वो राह निहारे।
छोड़ दिया सब उसके सहारे।
मेरी खुशियों का रखवाला।
ऐ सखि साजन? ना सखि ताला।।
18.
वो तो है जाना पहचाना।
सब चाहें बस उसको पाना।
देख उसे खिलती हर भाभी।
ऐ सखि प्रियतम? ना सखि चाभी।।
19.
सुख के रस की धार बहाये।
कड़वे तृण को छाँट हटाये।
उस बिन कोरा जीवन पन्ना।
हे सखि साजन? ना सखि छन्ना।।
20.
जहाँ कहीं वो मुझको पाये।
अंग अंग से लिपटा जाये।
गर रोकूँ तो छेड़े तान।
हे सखि साजन? ना री श्वान।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार


*कह-मुकरी*
*दिनांक - 23.09.21*

जीवन का दुर्भाग्य मिटाये।
सुख स्वप्नों की झरी लगाये।
चाहूँ हरदम पहुँचू उसतक।
हे सखि साजन? ना सखि पुस्तक।।

मुँह लगे तो स्वाद बढाये।
आँख छुए तो आँसू लाये।
हृदय छिपाया उसका राज।
ऐ सखि साजन? ना री प्याज।।

देख उसे यूँ हिय ललचाता।
फिर तो कुछ भी रास न आता।
उससे मिलन को करूँ ढिठाई।
क्या सखि साजन? नहीं मिठाई।।

नित स्वप्नों का वो आधार।
करवट लेता उसपर प्यार।
उसके आगे हर सुख बौना।
ऐ सखि साजन? नहीं बिछौना।।

जग में वो सम्मान दिलाये।
नित स्वप्नों को पंख लगाये।
कभी न देखी उसकी शक्ल।
ऐ सखि साजन? ना री अक्ल।।

✍🏻©️
सौरभ प्रभात 
मुजफ्फरपुर, बिहार

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