🌹ग़ज़ल 🌹
हमेशा हँसता रहता हूँ मगर जोकर नहीं हूँ मैं,
ज़माने के ग़मों की ज़द से भी बाहर नहीं हूँ मैं।
चले आओ कभी भी प्रेम से हाजिर हमेशा हूँ,
खुले हैं दिल के दरवाजे कोई दफ़्तर नहीं हूँ मैं।
सिफ़ारिश औ' ख़ुशामद मैं करूँ सम्मान की ख़ातिर,
कभी भी हो नहीं सकता कि वो शायर नहीं हूँ मैं।
ये शीतल जल नदी का है यही जीवन सुधा भी है,
भरा हो खारे ही पानी से वो सागर नहीं हूँ मैं।
अचानक इस तरह मुँह फाड़कर मत देखिए मुझको।
शिखर पर हूँ किसी भी और का पैकर नहीं हूँ मैं।
तुम्हीं हो ज़िन्दगी मेरी तुम्हीं हो जान भी मेरी,
कहोगे जो करूँगा सब मगर नौकर नहीं हूँ मैं।
करेंगे साजिशें तो मुँह की खायेंगे हमेशा वो,
मिटा दूँगा उन्हें जड़ से 'विजय' जर्जर नहीं हूँ मैं।
🌹ग़ज़ल 🌹
दिल तोड़ने की उनकी शरारत नहीं गयी,
वो बेवफ़ाई करने की नीयत नहीं गयी।
हमसे करें वो प्यार ज़रूरी नहीं मगर,
दिल में वही बसे हैं मुहब्बत नहीं गयी।
उनके लिए ही हँस के लुटा दी है जान भी,
फिर भी हमीं से उनकी शिक़ायत नहीं गयी।
वो बेमिसाल हुस्न अदा उसपे बाक़माल,
उस नाजनी के दीद की हसरत नहीं गयी।
टूटा है बार-बार भरोसा मेरा मगर,
दिल से भरोसा करने की आदत नहीं गयी।
पर्वत को काटकर नये रस्ते बनाऊँगा,
ताक़त नहीं तो क्या हुआ हिम्मत नहीं गयी।
मत हो निराश फिर से समय आएगा ज़रूर,
हाथों पे है यक़ीन तो किस्मत नहीं गयी।
तू बन नहीं सकेगा कभी आदमी 'विजय',
तेरी रगों से अब भी सियासत नहीं गयी।
विजय तिवारी,अहमदाबाद
🙏🙏🌹🌹
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें