सपनों का धुआं
आतुर सा मनवा डोल रहा
कुछ निरख रहा,कुछ खोज रहा
बरसो की करते है चिंता
सामान सजाकर यहां वहां
जीवन कठोर निर्मम पथ है
संघर्षों से पूरित है,जग का डगर
अपना सब कुछ भूल गया
रह गया सिर्फ,सपनो का धुआं।
क्या मुझको आवश्यकता होगी
दुखी बनाया,यही चाहत ने
ढूंढ रहा था मैं मृगनयनी
किस्मत में थी मृगछाला
बरसो की करते है चिंता
सामान सजाकर यहां वहां
अपना सब कुछ भूल गया
रह गया सिर्फ, सपनो का धुआं।
निशदिन की घटना चक्रों से
भूला मैं एक जमाना
मन चंचलता के परवश है
मैं विचर रहा हूं यहां वहां
अपना सब कुछ भूल गया
रह गया सिर्फ, सपनो का धुआं।
मैं हूं बहती धार नदी की
जिसका कोई छोर नही है
पंक्षी के पंखों सी उड़कर देख लिया
मंजिल की तो कोर नही है
बरसो की करते है चिंता
सामान सजाकर यहां वहां
अपना सब कुछ भूल गया
रह गया सिर्फ, सपनो का धुआं।
नूतन लाल साहू
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