सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नूतन लाल साहू

सपनों का धुआं

आतुर सा मनवा डोल रहा
कुछ निरख रहा,कुछ खोज रहा
बरसो की करते है चिंता
सामान सजाकर यहां वहां
जीवन कठोर निर्मम पथ है
संघर्षों से पूरित है,जग का डगर
अपना सब कुछ भूल गया
रह गया सिर्फ,सपनो का धुआं।
क्या मुझको आवश्यकता होगी
दुखी बनाया,यही चाहत ने
ढूंढ रहा था मैं मृगनयनी
किस्मत में थी मृगछाला
बरसो की करते है चिंता
सामान सजाकर यहां वहां
अपना सब कुछ भूल गया
रह गया सिर्फ, सपनो का धुआं।
निशदिन की घटना चक्रों से
भूला मैं एक जमाना
मन चंचलता के परवश है
मैं विचर रहा हूं यहां वहां
अपना सब कुछ भूल गया
रह गया सिर्फ, सपनो का धुआं।
मैं हूं बहती धार नदी की
जिसका कोई छोर नही है
पंक्षी के पंखों सी उड़कर देख लिया
मंजिल की तो कोर नही है
बरसो की करते है चिंता
सामान सजाकर यहां वहां
अपना सब कुछ भूल गया
रह गया सिर्फ, सपनो का धुआं।

नूतन लाल साहू

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान

राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को मिलि उत्कृष्ट सम्मान राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान हरियाणा द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में "हरिवंश राय बच्चन सम्मान- 2020" से शिक्षक दयानन्द त्रिपाठी (कवि दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल ) को उत्कृष्ट कविता लेखन एवं आनलाइन वीडियो के माध्यम से कविता वाचन करने पर राष्ट्रीय मंच द्वारा सम्मानित किया गया। यह मेरे लिए गौरव का विषय है।

डा. नीलम

*गुलाब* देकर गुल- ए -गुलाब आलि अलि छल कर गया, करके रसपान गुलाबी पंखुरियों का, धड़कनें चुरा गया। पूछता है जमाना आलि नजरों को क्यों छुपा लिया कैसे कहूँ , कि अलि पलकों में बसकर, आँखों का करार चुरा ले गया। होती चाँद रातें नींद बेशुमार थी, रखकर ख्वाब नशीला, आँखों में निगाहों का नशा ले गया, आलि अली नींदों को करवटों की सजा दे गया। देकर गुल-ए-गुलाब......       डा. नीलम

रमाकांत त्रिपाठी रमन

जय माँ भारती 🙏जय साहित्य के सारथी 👏👏 💐तुम सारथी मेरे बनो 💐 सूर्य ! तेरे आगमन की ,सूचना तो है। हार जाएगा तिमिर ,सम्भावना तो है। रण भूमि सा जीवन हुआ है और घायल मन, चक्र व्यूह किसने रचाया,जानना तो है। सैन्य बल के साथ सारे शत्रु आकर मिल रहे हैं, शौर्य साहस साथ मेरे, जीतना तो है। बैरियों के दूत आकर ,भेद मन का ले रहे हैं, कोई हृदय छूने न पाए, रोकना तो है। हैं चपल घोड़े सजग मेरे मनोरथ के रमन, तुम सारथी मेरे बनो,कामना तो है। रमाकांत त्रिपाठी रमन कानपुर उत्तर प्रदेश मो.9450346879