नई सुबह का नया फसाना
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छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
हरी घास पर मोती बिखरे
बन पुष्प नवकलियां निखरे
भँवरों को मिल गया बहाना
छेड़ रहे फिर नया तराना
नई सुबह का नया फसाना.....
रवि रश्मियों ने रंग भरे
नये अक्स आभा में उतरे
सूरज चढे तो तेज बढ़े
मस्त पवन का आना जाना
नई सुबह का नया तराना.....
ढलती शाम में लंबी छाया
मन थका,शिथिल है काया
पश्चिम में अस्ताचल सिंदूरी
यूँ ही चले रूठना मनाना
नई सुबह का नया फसाना......
प्रबुद्ध पटल को फक्कड़ का नमन
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