कुसुमित कुण्डलिनी ----
------ हमारे -----
चलो हमारे साथ तुम , इस दुनिया से पार ।
जहाँ सिर्फ शुचि प्रेम हो , बहे गंग की धार ।।
बहे गंग की धार , ईश के मिले सहारे ।
नहीं तोड़ना बंध , साथ ही चलो हमारे ।।
संग हमारे ईश हैं , कभी न छूटे भान ।
गढ़ना है अपने लिए , कोई लक्ष्य महान ।।
कोई लक्ष्य महान , देख कर रहा इशारे ।
कर खुद पर विश्वास , परम प्रभु संग हमारे ।।
कभी हमारे बीच में , पनपे नहीं खटास ।
कायम ही रखना सदा , अच्छी नेक मिठास ।।
अच्छी नेक मिठास , चलें लेकर चटकारे ।
आये नहीं दरार , दरमियाँ कभी हमारे ।।
आज हमारे देश की , खुशियाँ हैं रंगीन ।
खत्म सभी होने लगे , जुर्म घात संगीन ।।
जुर्म घात संगीन , सुखद हैं सर्व नजारे ।
अब चहुँओर विकास , देश में आज हमारे ।।
-------- रामनाथ साहू " ननकी "
मुरलीडीह ( छ. ग. )
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