कौन बडा़ है?
छत्र छाजेड़ ‘फक्कड़’
सही सुना है
लोकतंत्र में
लोक बडा़ है
मगर
कुछ और कह रहें है
हालात देश के कि
यँहा तो तंत्र बडा़ है
मनमानी चलती है
बस तंत्र की
लोक बेचारा तो
भीड़ बना
सड़क पर खड़ा है
योजनाएँ नित बनती है
सिर्फ़ लोक के लिए
मगर तंत्र के चलते
लोक यँहा का
जँहा का तँहा पड़ा है
सुधरेंगें कैसे हालात
सबके सामने
प्रश्न यही खड़ा है
लोक जुड़े या नहीं
लोकपाल के साथ
यह फ़ैसला कुछ कड़ा है
तंत्र कब चाहेगा
कोई व्यवधान जिससे
लगे अंकुश उन पर
क्योंकि
सारा का सारा तंत्र सड़ा है
पाने को स्व-सुविधा को
स्वार्थ सिद्धि में
स्वयं लोक फिसल कर
क़ानून और नीति से दूर खड़े है
ऐसे में क्या होगा
राम -कृष्ण के इस देश का
मैली हो चुकी जँहा गंगा
आदमी से आदमी
ले रहा है पंगा
नीति,क़ानून,रिश्तों के
समिश्रण की आड़ में
इंसान स्वंय खड़ा है नंगा
जाने कब से खड़ा है
हमारे सामने
कि क्या होगा ऐसे में
प्रश्न यही बड़ा है?
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