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ब्रजेन्द्र मिश्रा ज्ञासु

"बेटी"

हर घर का श्रृंगार है बेटी।
ईश्वर का उपकार है बेटी।

घर में रहती रौनक इससे।
जीवन का वो सार है बेटी।

दो दो घरों का बनती सेतू।
खुशियों का संसार है बेटी।

अगर दीपक  हैं बेटे घर के।
तो बाती का आकार है बेटी।

बोझ न समझो यारों इनको।
पूरा जिनसे परिवार है बेटी।

जीवन से लेकर के मृत्यु तक।
परम स्नेह की बौछार है बेटी।

है रिश्तों की गर्माहट जिससे।
वो जलता हुआ अंगार है बेटी।

अगर आये परिवार पर संकट।
तो  बन जाती तलवार है बेटी।

लुटानी पड़े जो जान वतन पे।
तो करती  नहीं इंकार है बेटी।

आधी शक्ति समाहित इसमें।
दुनिया  का  आधार है बेटी।

इसीलिए तो सदा सम्मान का।
ज्ञासु रखती अधिकार है बेटी।

ब्रजेन्द्र मिश्रा 'ज्ञासु'
निवास बंगलूरू, कर्नाटक
मूल निवास सिवनी मध्यप्रदेश
मोबाइल 7349284609

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