*गीत*(16/12)
ऐसी हवा बही कुछ मित्रों,
जिसमें ज़हर भरा है।
जिधर देखिए मुँह फैलाए,
अरि ले वाण खड़ा है।।
विवश हो गई जनता सारी,
समझ न आए उसको।
जहाँ देखिए घबराए सब,
दुख कहते तो किसको?
भाग-दौड़ सर्वत्र मची है-
वह शैतान अड़ा है।।
अरि ले वाण खड़ा है।।
स्थिति इतनी हुई भयावह,
लोग भागते फिरते।
मिलना-जुलना बंद हो गया,
छिपे-छिपे घर रहते।
कोई मदद नहीं करता है-
पीछे शत्रु पड़ा है।।
अरि ले वाण खड़ा है।।
नित प्रकोप बढ़ता ही जाए,
अंत न इसका लगता।
जग में हाहाकार मचा है,
देख,कौन है बचता।
प्रभु का मात्र आसरा अब है-
भारी प्रभु-पलड़ा है।।
अरि ले वाण खड़ा है।।
हे,प्रभु तेरा शत-शत वंदन,
भक्त पुकारें तुमको।
आओ नाथ बचा लो जग को,
करो सुरक्षित सबको।
अकथ नाथ है महिमा तेरी-
लगता अरि तगड़ा है।।
अरि ले वाण खड़ा है।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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