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डॉ0 हरि नाथ मिश्र

*गीत*(16/12)
ऐसी हवा बही कुछ मित्रों,
जिसमें ज़हर भरा है।
जिधर देखिए  मुँह फैलाए,
अरि ले वाण खड़ा है।।

विवश हो गई जनता सारी,
समझ न आए उसको।
जहाँ देखिए घबराए सब,
दुख कहते तो किसको?
भाग-दौड़ सर्वत्र मची है-
वह शैतान अड़ा है।।
     अरि ले वाण खड़ा है।।

स्थिति इतनी हुई भयावह,
लोग भागते फिरते।
मिलना-जुलना बंद हो गया,
छिपे-छिपे घर रहते।
कोई मदद नहीं करता है-
पीछे  शत्रु  पड़ा  है।।
    अरि ले वाण खड़ा है।।

नित प्रकोप बढ़ता ही जाए,
अंत न इसका लगता।
जग में हाहाकार मचा है,
देख,कौन है बचता।
प्रभु का मात्र आसरा अब है-
भारी प्रभु-पलड़ा है।।
    अरि ले वाण खड़ा है।।

हे,प्रभु तेरा शत-शत वंदन,
भक्त पुकारें तुमको।
आओ नाथ बचा लो जग को,
करो  सुरक्षित  सबको।
अकथ नाथ है महिमा तेरी-
लगता अरि तगड़ा है।।
    अरि ले वाण खड़ा है।।
              © डॉ0 हरि नाथ मिश्र
                  9919446372

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