*दोहे*
प्रभु का रूप अनंत है,प्रभु-आकार विराट।
प्रभु-महिमा-सीमा नहीं,सकल लोक-सम्राट।।
तारे-रवि-शशि तो सभी,रहें सदा आकाश।
पर,प्रकाश दें अवनि को,बिना लिए अवकाश।।
हिंदी का गौरव बढ़े, हिंदी हिंदुस्तान ।
यही देश की शान है,यह अपना सम्मान।।
बिना कला-साहित्य के,जीवन नरक समान।
पढ़कर ही साहित्य को,होता मनुज महान।।
संसद की गरिमा गिरी,छिड़ता सदा विवाद।
आपस में प्रतिनिधि लड़ें,तज जनहित-संवाद।।
© डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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