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रामनाथ साहू ननकी

कुसुमित कुण्डलिनी  ----
     ------ रोना -----

रोना ही शुरुआत है , हँसना लगता झूठ ।
अल्प समय की ये क्रिया , फिर पकड़े दुख मूठ ।।
फिर पकड़े दुख मूठ , यही जीवन भर होना ।
अद्भुत है संसार , लगे जीवन भर रोना ।।


रोना खुलकर हे सखे , बन्द नहीं कर द्वार ।
हृदय कुंज के दीप से , मन होता उजियार ।।
मन होता उजियार , चैन से फिर तुम सोना ।
बीत गये तम रात ,  सही होगा यह रोना ।।


रोना तो है जिंदगी , नहीं मिला पिय साथ ।
सिर्फ दिखावा ही किया , रखकर ऊँचा माथ ।।
रखकर ऊँचा माथ , बता अब क्या है खोना ।
जब तक चलती श्वास , भाग्य में दिखता रोना ।।


रोना संवेदन कला , बनते बिगड़े काम ।
पत्नी नेता नागरिक , खास रहे या आम ।।
खास रहे या आम , सफलता तार सँजोना ।
चमत्कार यह भाव , सीखना पड़ता रोना ।।

                   -------- रामनाथ साहू " ननकी "
                              मुरलीडीह ( छ. ग. )

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीय गुरु जी आपको बहुत-बहुत सादर नमन वंदन अभिनंदन

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