[22/10, 6:44 am] Kavi S K KAPOOR Ji: *।।रचना शीर्षक।।*
*।। हर धड़कन मे हिंदी*
*हिन्द हिंदुस्तान चाहिये।।*
*।।विधा।। मुक्तक।।*
1
हर रंग से भी रंगीन
हिंदुस्तान चाहिये।
खिले बागों बहार
गुलिस्तान चाहिये।।
चाहिये विश्व में नाम
ऊँचा भारत का।
विश्व गुरु भारत
का सम्मान चाहिये।।
2
मंगल चांद को छूता
भारत महान चाहिये।
अजेयअखंड विजेता
हिंदुस्तान चाहिये।।
दुश्मन नज़र उठाकर
देख भी ना सके।
हर शत्रु का हमको
काम तमाम चाहिये।।
3
हमें गले मिलते राम
और रहमान चाहिये।
एक दूजे के लिए
प्रणाम सलाम चाहिये।।
चाहिये हमें मिल कर
रहते हुए सब लोग।
एकदूजे के लिए दिलों
में एतराम चाहिये।।
4
एक सौ पैंतीस करोड़
सुखी अवाम चाहिये।
कश्मीर कन्याकुमारी
प्रेम का पैगाम चाहिये।।
चाहिये विविधता में
एकता शक्ति दर्शन।
देशभक्ति सरीखा राष्ट्र
में यशो गान चाहिये।।
5
पुरातन संस्कार मूल्यों
का गुणगान चाहिये।
हर चेहरे पे भारतवासी
जैसी मुस्कान चाहिये।।
चाहिये गर्व और गौरव
अपने देश भारत पर।
हर धड़कन में हिन्दी
हिंद का पैगाम चाहिये।।
*रचयिता।।एस के कपूर "श्री हंस"*
*बरेली।।*
*©. @. skkapoor*
*सर्वाधिकार सुरक्षित*
[22/10, 6:45 am] Kavi S K KAPOOR Ji: *।।हमारा अपना व्यक्तित्व।।जीवन*
*की अनमोल धरोहर।।*
*(विविध हाइकु)*
1
पेड फलों के
ओ गुणवान व्यक्ति
दोंनों ही झुकें
2
मूर्ख मृतक
बदले ये न कभी
रहें प्रथक
3
ये ताश पत्ता
कभी जल्दी या देर
जाता है सत्ता
4
बोल विचार
आचार व्यवहार
सदा सुधार
5
वाणी सुरीली
न बना इसे तीर
बना रसीली
6
सबसे स्नेह
कितना ये जीवन
ना रहे देह
7
मीठा बोलिये
दिल में उतरती
मिश्री घोलिये
8
आलस्य भागे
वही रहता सुखी
वक़्त से जागे
9
दुख से बचे
विनम्रता हो पास
जीवन जचे
10
कर न छोटा
सम्मुख है आकाश
मन को खोटा
11
छूना आसमाँ
यदि पास विश्वास
पूरे अरमां
12
तू कर्म कर
वक़्त पे मिले सब
रह निडर
13
विचार जल
गंध सुंगध मिले
हो गंगा जल
14
कपट विद्या
हार ये जीत नहीं
है यह मिथ्या
15
जीने की आशा
खोना पाना जीवन
न हो निराशा
16
ये ज्ञान शिक्षा
कर्म बुद्धि विवेक
न हो अशिक्षा
17
साहस बल
आत्म अनुशासन
बाकी है छल
18
सीधा ओ साफ
दिल में रखो नहीं
कर दो माफ
*रचयिता।।एस के कपूर"श्री हंस"*
*बरेली।।*
*©. @. skkapoor*
*सर्वाधिकार सुरक्षित*
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