सोंच
हर पल, न जाने हम
क्या क्या सोंच रहें है
जीवन अभी बहुत शेष है,कहकर
माया मोह में है भरमाया।
पर अकस्मात
क्या घटना, घटने वाली है
किसी ने
अब तक न जाना।
समय बहुत बलवान है
यह बात, समझोंं या न समझाें
सुख की घड़ियों के स्वागत में
दुःख को क्यों आमंत्रित कर रहे हो।
मानव जीवन का लक्ष्य बहुत दूर है
आगे की राह है,बहुत जटिल
पद, धन,वैभव प्राप्त कर लेना ही
कोई सफलता नही है
हमारा लक्ष्य है,भवसागर पार जाना।
प्राण सबको प्रिय है
पर जग में,कोई अमर नही है
जगत है चक्की, एक विराट
जिसके दो पाट है,दीर्घाकार
आशा और निराशा
आपके सोंच पर है निर्भर।
नए जगत में आंखें खोलो
नए जगत की चालें देखाें
बुद्धि से कुछ समझा नही तो
ठोकर खाकर तो कुछ सीखों।
हर पल न जाने हम
क्या क्या सोंच रहें है
सोंच में ही,अपना पल बर्बाद न कर
राह पकड़ तू, एक चला चल
लक्ष्य है बहुत दूर,पर नामुमकिन नही है
अपनी सोंच को बदलें, सितारें बदल जायेंगे।
नूतन लाल साहू
समीक्षा
आज सुबह से शाम तक
क्या क्या किया तुने
इसकी समीक्षा क्यों नही किया।
है क्या इरादा
क्यों खुद पर ध्यान नही दिया,
कैसी रंगत, भला बना ली है
गलतियों पर,कैसे लगेगा लगाम।
जैसे मोती
सागर से निकला, सीपी में पला
आभा से भरपूर,सुंदर रूप में ढला होता है
वैसे ही तू भी
लख चौरासी योनि भटककर
सुर दुर्लभ मानव तन पाया है।
नयनों पर
तेरी दो भौहों का पहरा है
सिर्फ पसीना बहाये जा रहा है
देख सूरज भी ढलने वाला है।
आज सुबह से शाम तक
क्या क्या किया तुने
इसकी समीक्षा क्यों नही किया।
चींटी चली है, देखों
तितली का पंख लेकर
लहरें चली है, देखों
हाथों में शंख लेकर।
तू भी ऐसा ही कुछ कर
बैठा रहेगा कब तक
आज सुबह से शाम तक
क्या क्या किया तुने
इसकी समीक्षा क्यों नही किया।
नूतन लाल साहू
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