गीतिका डॉ० अवस्थी
***हमको हमारे यत्नका,
प्रतिफल नही मिलता i
कर्म को सौभाग्य का
संबल नहीं मिलता i
*********************हिरन मन का दौड़ता,
फिरता मरुस्थल मे,
किन्तु खोजे भी कहीं पर
जल नही मिलता i1
*बाद संध्या के उदित रजनी हुई,
चाँदनी का किन्तु कोई
पल नहीं मिलता i
प्रश्न हैं सम्मुख खड़े झंखाड़ से,
चल रहामन्थन मगर
कुछ हल नहीं मिलता i
उम्र का जलयान ,जर्जर हो चला,
सिन्धु की गहराइयों का
तल नहीं मिलता i
स्वार्थ की विमलेश यूँ
भरमार है,
किसी का भी मन यहाँ
निर्मल नहीं मिलता i
रचनाकार
डॉ० विमलेश अवस्थी
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