*मुक्तक*
नीति को जान लो,और
आगे बढ़ो i
शत्रु पहचान लो,और
आगे बढ़ो i
युद्ध की गर चुनौती,
तुम्हें मिल रही,
वक्ष को तान लो,और
आगे बढ़ो i
▪️
कर रहे तुम पड़े,लोक रंजन यहाँ i
घिर रहेहैं प्रलय के
प्रभञ्जन यहाँ i
शत्रु है सामने,तुम
जगो तो सही
आज करना तुम्हें
भाल भञ्जन यहाँ
*डॉ० विमलेश अवस्थी*
*त्रिपदी डॉ० विमलेश* *अवस्थी*
*सन सन चलता पवन
मेघो से भरा गगन
वर्षा हो रहीसघन i
शीत का आगमन ।
भीगा सा तन मन ।
प्राकृतिक परिवर्तन ।
मौसम हठीला है ।
कणकण गीला है।
प्रकृति की लीला है i
दुश्वारियाँ बढ़ेंगीं i
लाचारियां बढ़ेंगी i
बीमारियां बढ़ेंगी ।
डॉ० विमलेश अवस्थी
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