विश्व रजोनिवृत्ति दिवस:18अक्टूबर
18/10/2021
जीवन के अर्धशतक पर पहुँची औरत की रजोनिवृत्ति से जुड़ी समस्याओं पर एक रचना।
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किससे कहूँ वो बात'?
कुछ अलग सी मन: स्थिति...हर दिन...हर समय...मन में एक भय...कुछ संकोच...थोड़ा तनाव....,
हाँ.. ऐसे कठिन दौर से गुजरना... जब आते हैं ज़िंदगी में बहुत से मानसिक और शारीरिक उतार चढ़ाव।
ये हैं वो कठिन दिन जब एक स्त्री को होती है रजोनिवृत्ति काल की शुरुआत...,
हाँ आज कर रही हूँ मैं महिलाओं की ज़िंदगी में उसी दौर की बात।
हार्मोन्स का असंतुलित होते चले जाना...,
यूं ही स्वभाव का चिड़चिड़ा होते जाना।
शरीर में हर समय सुस्ती,थकान एवं कमज़ोरी...,
असमय,अनियमित अत्याधिक माहवारी ।
घर के सभी ज़रूरी काम करते हुए चुपचाप यह पीड़ा झेलना...,
उस पर रोज़ाना की तरह सामान्य ही दिखाई देना।
सभी अपनी ज़रूरतें समय से पूरी होने की करते हैं हमेशा की तरह अपेक्षा...,
पर अब शुरु होती है उसके जीवन की एक नई परीक्षा...।
परीक्षा तो अब तक भी हर महीने के पाँच सात उन मुश्किल दिनों में भी दी है....,
नौकरी,घर,बच्चे और अन्य ज़िम्मेदारी वो भी अथक....चेहरे पर बिना किसी भाव/शिकन के पूरी की है।
पर यहां स्थिति होती है बिल्कुल भिन्न ही, कुछ और....,
हर वो स्त्री झेल रही है जो चुपचाप मेनोपोज़ का शुरुआती दौर ।
भय,तनाव,संकोच,शर्म और पीड़ादायक स्थिति का अहसास लिए...,
इस 45....50 की उम्र में युवा होते बच्चे और वृद्ध सास ससुर सबकी ज़िम्मेदारी लिए।
घर बाहर हर कोई अनजान बना हुआ उससे पहले जैसी ही उम्मीद है रखता...,
बहुत ही मुश्किल होती है जब उसकी इस हालत को कोई भी तो नहीं समझता।
माना कि इस घर में आए हुए 25 बरस बाद सास ससुर अधिक वृद्ध हो चले हैं आज...,
पर 25 साल पहले वह जैसी थी अब 50 की उम्र में ऐसी कहाँ रही है वो आज।
सभी की अपेक्षाएँ तो अब उससे और भी अधिक बढ़ गई हैं...,
पर नहीं सोचता कोई कि अब वह भी प्रौढ़ावस्था की ओर बढ़ गई है।
शारीरिक बदलाव,उम्र के पड़ाव और ये अवस्था उसे पहले की तुलना में शिथिल और तनावग्रस्त बना देते हैं...,
पर अक्सर उसे बिना समझे सभी
आलसी,अकर्मण्य,लापरवाह और उदासीन समझ लेते हैं।
न कोई पुरुष,न घर की कोई महिला ही अक्सर यह बात समझने की कोशिश करती है...,
क्यूंकि इस दौर में हर किसी की स्थिति एक दूसरे से अलग-अलग हो सकती है ।
किसी किसी के लिए यह बहुत ही सामान्य सी हो सकती है घटना...,
तो किसी किसी को इस कठिन दौर को 2,3,5 वर्षों तक पड़ता है सहना।
इस मुश्किल समय में वो असहाय सी किसी से कुछ भी तो नहीं कह पाती...,
आखिर कहे भी तो किससे कहे अपने मन की यह पाती (चिट्ठी)?
इस समय सबसे अधिक ज़रूरत होती है उसे समझने की...,
अपनों के साथ, सहयोग और इस मुश्किल दौर से उबरने की।
क्या कोई भी नहीं समझ सकता उसे?
कि कोई समझना ही नहीं चाहता उसे?
तो फिर आख़िर किस्से?
..... आख़िर वो अपने मन की कहे किससे??
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रजोनिवृत्ति के मुश्किल दौर से गुज़र रही प्रत्येक महिला के अंतर्मन की पीड़ा से उठते कुछ प्रश्न।
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना:
*चंचल हरेंद्र वशिष्ट, हिंदी प्राध्यापिका थियेटर प्रशिक्षिका कवयित्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता नई दिल्ली भारत*
आप सभी साहित्यकारों की समीक्षात्मक प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी। हार्दिक स्वागत एवं अभिनन्दन 🙏🙏 काव्य रंगोली मंच का अंतस् से आभार।
जवाब देंहटाएंहम लोग अक्सर ऐसे विषयों पर बात करने से कतराते हैं कि कोई हमें कमजोर न समझ ले लेकिन इस विषय पर बात कर अपनी मनःस्थिति सबके सामने रखना बेहद ज़रूरी है। आखिर यह सब भी शरीर के अन्य प्राकृतिक बदलावों में से ही एक है। नारी की पूर्णता को सम्पूर्णता प्रदान करता यह हार्मोन्स का असंतुलन नहीं बल्कि नारी की शारीरिक क्षमता की हदें और उसकी असीमित सहनशक्ति को उजागर करता बदलाव है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा प्रिय चंचल आपने 👌👌