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गौरव शुक्ल

पत्नी


"पाकर के    जिसको पुरुष  पूर्ण होता है,
जिसके बिन   जीवन सार तत्व खोता है।
हर पाप पुण्य   में जिसका आधा हक है,
हर पूजा पाठ,    यज्ञ जिससे सार्थक है।

शास्त्रों ने   जिसको  अर्द्धांगिनी कहा है,
जीवन स्वामिनी  व सहधर्मिणी कहा है।
जो वरण अग्नि के सम्मुख की जाती है,
ले फेरे सात, जिंदगी में         आती है।

आती है तभी असल  में घर बस पाता,
अनमोल  धर्मपत्नी का सचमुच  नाता।
यह पति के प्राण माँग   यम से लाई है,
सीता बन   कभी पार्वती बन   आई है।

पति के शव के सँग जली,नहीं उफ बोली,
हर व्यथा सही, पर   नहीं धर्म से  डोली।
आबद्ध जिसे कर   अपने बाहु-वलय में,
डुबकियाँ लगा जिसके निस्सीम प्रणय में-

हर चिंता हर  थकान को अपनी  खो  कर,
स्वर्गिक सुख का आभास प्राप्त करता नर।
वह सहज प्रणम्या, अतुलित  मनभावन है,
नारी का    पत्नी रूप       परम  पावन है।

हम परिहासों में जिसे न  क्या क्या  कहते,
चुटकुले   रोज    ही   नये    बनाते  रहते।
पर हर   कटाक्ष    हँसकर  बिसार देती है,
बदले में    हमको    मात्र    प्यार  देती है।

उस  सहनशीलता  की  प्रतिमा का  वंदन।
उस परिणीता, उस भार्या  का  अभिनंदन।
                -------
                                     -गौरव शुक्ल
                                          मन्योरा
                                   लखीमपुर खीरी

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