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मधु शंखधर स्वतंत्र

*गज़ल*
बहर  -212   212  212  212*
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वो जहाँ भी रहे पास लाए मुझे।
इक रुहानी अदा  सी सताए मुझे।।

वो करे दिल्लगी बात ही बात में,
बात बिगड़े यदि तो जताए मुझे।।
 
छोड़ दे सारी दुनिया कोई गम नहीं,
ख़ाक में भी मिले तो बताए मुझे।।

चाँद तारों पे होगी ये दुनिया नई,
ख़्वाब कितने ही उसने दिखाए मुझे।।

अश्क आँखों में आने से पहले सदा,
पास आकर अदा से हँसाए मुझे।।

ख़त लिखे थी कभी जो मेरी याद में,
लफ्ज़ वैसे ही उसके पढ़ाए मुझे।।

आसमानों पे है कोई ताकत अगर,
 मेरे महबूब से अब मिलाए मुझे।।

भूलने की अदा मुझको भाती नहीं,
साँस चलने तलक याद आए मुझे।।

प्यार के राग में गीत गाए मधु,
गीत वैसा ही कोई सुनाए मुझे।।
मधु शंखधर स्वतंत्र*
*प्रयागराज*

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