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मार्कण्डेय त्रिपाठी

नेताजी नमस्कार

हे नेताजी, शत् नमस्कार ,
सचमुच तुम भाग्यविधाता हो ।
कथनी, करनी में भेद बहुत,
तुम बेमौसम का छाता हो ।।

लकलक करते हैं श्वेत वस्त्र,
छाया मन में भारत विधान ।
कुर्सी में बसते हैं सचमुच,
हे दिव्य देव,तव सतत् प्राण ।।

हे नाथ, कोई ना समझ सके,
कब तक तुम साथ निभाओगे ।
यह राजनीति की माया है,
सुख, चैन कहां तुम पाओगे ।।

गाड़ी, बंगला, नौकर चाकर,
सब तुम्हें सहज मिल जाते हैं ।
ना जानें कितने बैंकों में ,
हे प्रभुवर तेरे खाते हैं ।।

क्या कर लेगा कानून प्रभू ,
हर शाख पे उल्लू बैठा है ।
तुम तो सच अंतर्यामी हो,
कब कान किसी ने ऐंठा है ।।

हर विषय तुम्हें कंठस्थ प्रभू,
हम सुनकर तुम्हें अघाते हैं ।
वाणी साधक भी यदा-कदा,
तव वचनों में रम जाते हैं ।।

सिर पर चुनाव जब आता है,
तुम दीन हीन बन जाते हो ।
हे नाट्य कला में कुशल बन्धु,
क्या यह सब कर सुख पाते हो ।।

आज़ादी के परवानों की ,
क्या याद तुम्हें भी आती है ।
जनता की चीख-पुकारों से,
क्या कभी धड़कती छाती है ।।

विश्वास नहीं कोई करता,
हे कपट मित्र, क्या बतलाऊं ।
है खतरनाक तव हास्य प्रभू,
कैसे निज मन को समझाऊं ।।

बगुलों में हंस छिपा बैठा,
निकले तो उसकी खैर नहीं ।
कुछ तो बोलो ,हे कोपसिंधु,
लेता मैं सचमुच वैर नहीं ।।

भारत पर थोड़ी दया करो,
ना फंसे तुफानों में नैया ।
आज़ादी की कीमत समझो,
हे पूण्य देश के खेवैया ।।

मार्कण्डेय त्रिपाठी

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