*मनहरण घनाक्षरी*
रोम-रोम पुलकित, धरा हुई आलोकित।
लेकर सुहानी भोर,
*सूर्य फिर आए हैं* ।।
जीव-जंतु उठ गए पंछी करें कलरव।
सुंदर-सुंदर फूल,
*मन को लुभाए हैं* ।।
अनुपम अद्वितीय छटा यह प्रकृति की।
प्रभु की अजब लीला,
*समझ न पाए हैं* ।।
सभी करें गुणगान, प्रभु आप हैं महान।
राधेश्याम राधेश्याम,
*यही गीत गाए हैं।।*
डाॅ. आलोक कुमार यादव
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