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प्रखर दीक्षित

*आख़िर क्यों ......?*

दुखती रग को दबाना
कदाचित शगल हो गया-
उनका, बिखरते स्वपन धूर
रह - रहकर वेदना के 
व्रणों को कुरेदा जाता
आख़िर क्यों.......?

सयानी होती बेटी से
पूछे जाते हैं प्रश्न
रखा जाता बाहर जाने
और
देरी का हिसाब
कौन , क्यों , किसलिए
यद्यपि
बेटे स्वतंत्र इस निगरानी से
जबकि संतति दोनों
संस्कारित होना का आवश्यक
समाज में सिर्फ़ बेटी की अग्निपरीक्षा
आख़िर क्यों.......?

जिनकी ज़र
जिनसे असितित्व
जिनके नाम और पुरुषार्थ कारण
प्रसिद्धि का परचम बुलंद
आज ----
उन्ही वृद्ध आँखों में अश्रु पारवार
और 
ह्रदय में उद्वेलन का मौन आर्ट करून क्रंदन 
संतति की विमुखता
आख़िर क्यों.......?

लुट रहे जीवन
सज रहे बाजार
सब कुछ बिकने की होड में
करुणा दया सम्वेदना उपकार
सौहार्द प्रेम और 
मानवीय संचेतना
सब लगा दाँव पर
ह्रदयहीन जिन्दा लाशों में 
स्वार्थ का विषाणु
आख़िर क्यों.......?

आइए विचार करें
गर्द को झाडें 
फटे में पैबंद टांकें
रिश्तों को पुनः 
त्याग के धागे से रफू कर सकें 
नयी सोच की इमारत खड़ी करने में संकोच
आख़िर क्यों.......?

*प्रखर दीक्षित*

*फर्रुखाबाद*

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