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प्रखर दीक्षित

*कर्क चतुर्थी पर जीवनसंगिनी को सनेह भेंट*

*वर्तिका तुम प्रिये*

सांझ का दीप मैं, वर्तिका तुम प्रिये,
तुम चिरंतन अकथ सी कहानी मेरी।।

संगिनी तुम सुभग, तार सप्तक तुम्हीं,
श्रांत का तुम नमिष, शर्म पानी मेरी।।

जीवनीय पथ सुघर , मोद अल्हादिनी,
काम्य रम्या प्रभा, मधुर संभाषिनी,
मंत्रिणी साधिका, लाज संस्कृति प्रदा,
सौख्य संतति जा सुख विनोदिनी
हे रतिके प्रियम्,पूर्णिमा द्युति अगम,
शौर्य की शक्ति तुम ही रवानी मेरी।।
*तुम चिरंतन अकथ सी कहानी.....*

उर्मियां तुम हो सागर की अठखेलियां
शपथ प्रणयन की पावन तुम्हीं फेरियां
चित्रलेखा मेरी व्यञ्जना भाव की
तुम अर्धांग मेरा , लास्य की बालियां
छंद रस में पगी छंद का व्याकरण,
पूर्ण विधु सी खिली हो सुहानी मेरी।।
*तुम चिरंतन अकथ सी कहानी.....*

बिन तुम्हारे यह जीवन सूना सखी,
चिंत कारक घड़ी दु:ख दूना सखी
प्रदाक्षिणा तुम मेरी मैं शपथ हूं सदा
जाग्रत हूं निरंतर मैं न मरना सखी
ग्रंथि पावन अटल, संग श्वासों तलक,
दौज का चंद्र मैं ,तुम चंद्रानी मेरी।।
*तुम चिरंतन अकथ सी कहानी.....*

*प्रखर दीक्षित*
*फर्रुखाबाद*

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