#दया
#विधा_कविता
#दिनांक -23 /10/2021
#दिन- शनिवार
कोई कहे मेरा धर्म हिन्दू है,
कोई कहे में धर्म से मुस्लिम भाई।
कोई कहे में हूँ सिख तो,
कोई कहे मेरा धर्म ईसाई।
अपने अपने धर्म को लेकर,
करते सदा हम वाद-विवाद।
पर हर धर्म का मूल दया है,
जिस को भूल करते है हम कई अपराध।
चाहे किसी भी धर्म के हो हम,
दया है हर धर्म का आधार।
दया हो सृष्टि के हर इक प्राणी पर,
क्योकि हर इक है धरा पर ईश्वर का उपहार।
दया हर व्यक्ति को नेक बनाती,
सत्कर्मों की राह दिखाती।
दया हर धर्म को श्रेष्ठ बनाती,
यह कभी न निष्फल जाती।
नंदिनी लहेजा
रायपुर(छत्तीसगढ़)
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
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