शीर्षक - पहले मन के रावण को मारो.......
भले राम ने विजय है पायी,
तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।।
घूम रहे हैं पात्र सभी अब,
लगे लगाये लिए मुखौटे।
क्रोध, कपट और चुगली से,
सजे सजाये छल में लिपटे।
हैं राम चिरंतन सत्य सनातन,
रावण वैर विकार उतारो।।
भले राम ने विजय है पायी,
तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।।
खड़े तमाशा देखने वाले,
तेरा मन भी कलुषित है।
हुआ पतन है आज सभी का,
असुर भाव से कलंकित है।
घूम रहें हैं खर-दूषण सा बन,
मायावी मृग मारीच को मारो।।
भले राम ने विजय है पायी,
तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।।
व्यर्थ हो रहे अर्थ हमारे,
भ्रष्टाचारी खूब हैं बढ़ते।
छाया है संकट का घेरा,
कहां अनाचारी शूली हैं चढ़ते।
राजनीति में जाति लड़ रहीं,
कहें निराला प्रपंच को मारो।।
भले राम ने विजय है पायी,
तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।।
- दयानन्द त्रिपाठी निराला
सटीक एवं सार्थक सृजन 👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंकुछ पंक्तियां आपकी रचना के संदर्भ में.....
मन की दुष्प्रवृत्तियों का संहार करो
श्रीराम की तब जय जयकार करो
अंतर्मन के दशानन का पहले तुम
सदवृत्तियों से दहन संस्कार करो
असत्य पर सत्य की जीत होती है
इस बात को पहले स्वीकार करो
ज़रूरी नहीं कि जलाएँ रावण हम
श्रीराम चरित्र को बस स्वीकार करो
संदेश देता दशहरा पर्व हम सबको
अमर्यादित का सदा बहिष्कार करो।
चंचल हरेंद्र वशिष्ट नई दिल्ली भारत
आज के यथार्थ का ज़ही चित्रण ।बहुत बधाई ।
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