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चेतना चितेरी,

इक परिंदे— सी ये जिंदगी
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इक परिंदे—सी ये जिंदगी!
आज हम यहां 
  जाने कल कहां बसेरा हो।

जीवन क्या! भरोसा
कर ले प्रेम एक दूजे से
छूट जाएगी अहम की गठरी
एक दिन चोला बदल जाना है,

इक परिंदे— सी ये जिदंगी!
आज हम यहां 
   जाने कल कहां बसेरा हो।

मन को कर ले निर्मल
ना कर भेद किसी से
छोड़ चला जाएगा एक दिन
कुछ लेकर न जाएगा
फिर क्यों इतना,
अधर्म की कमाई कमा रहा 
इस जनम को सार्थक कर ले
एक दिन घर बदल जाएगा,

 इक परिंदे—सी ये जिंदगी
आज हम यहां
जाने कल कहां बसेरा हो।

(मौलिक रचना)
चेतना चितेरी, प्रयागराज
22/10/2021,7:21am

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