ढेबरी अर ज़िंदगी
छत्र छाजेड़ “फक्कड़”
ढेबरी
च्यानणे खातर
जगायी जठै जठै
बणग्या दाग
काला़ काला़
गोबर लीपी गेरूंआ भींत पर
रीसै
हरअेक दाग स्यूं
अेक पीड़
लपलपाती,झोला खाती
बतावै
ढेबरी री आ लौ
क्हाणी ज़िंदगी री
और
जिंया ही
पूर लाग्यो
साफ़ करण नै
बां
काला़ मटमैला दागां नै
हो’गी पूरी की पूरी भींत
स्याह रात सी काली़
अर
अेकामेक,अेकसार
हुयगी
आ भींत स्याह
म्हारी
दुख पांती
डोलती ज़िंदगी सी
पटल का सगला़ नै म्हारा जुहार सा
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