चरागों की तरह जलने की दिल में चाह हो तो चल
अँधेरों में पड़े लोगों की गर परवाह हो तो चल
इन्हे फुर्सत नहीं अपनी तिजोरी की हिफाजत से
किसी बस्ती मे भूखों का भी कोई शाह हो तो चल
सुकूँ दिल को नहीं कोई, इधर मरहम, दवाओं से
कहीं मन्नत, दुआओं का कोई, दरगाह हो तो चल
पड़े थे पाँव में छाले, दरिंदों नें कुचल डाले
कोई बेदम मुसाफिर भी, तेरा हमराह हो तो चल
घने बादल सियासत के, सुबह होने नहीं देते
तिमिर के इस समंदर की. तुझे कुछ थाह हो तो चल
: शिवशंकर तिवारी ।
छत्तीसगढ़।
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