अपनी क्षमता का पहचान कर लें
सृष्टि यदि चलती रही तो
संघर्ष भी,सिंधु मंथन की तरह
निरंतर,चलता ही रहेगा
आपदाएं आयेगी
कष्ट झेलना पड़ेगा ही।
पर धीरता से,गंभीरता से
वीरता से, कष्टों को
बर्दाश्त करना,सीख लें
सुर दुर्लभ मानव तन पाया है
अपनी क्षमता का पहचान कर लें।
देव और दानव तो
सतयुग,त्रेता और द्वापर में भी थे
तो कलियुग में भी
कैसे नही रहेगा।
शोर भर करते रहेंगे तो
हमारा उद्धार कैसे होगा
पद, धन और वैभव प्राप्त करना
मानव जीवन का लक्ष्य नही है
राम रतन धन,मिल जाएं
ऐसा कुछ यतन कर लें,
सूर दुर्लभ मानव तन पाया है
अपनी क्षमता का पहचान कर लें।
उछल कूद मची हुई है
शत्रु,चारो ओर से ललकार रहा है
जैसे वीर अभिमन्यु
चक्र व्यूह में फंसा हुआ था
त्याग, तप और निःस्वार्थ सेवा ही
मानव को अमर बना सकता है
पर धीरता से,गंभीरता से
वीरता से,कष्टों को
बर्दाश्त करना सीख लें
सूर दुर्लभ मानव तन पाया है
अपनी क्षमता का पहचान कर लें।
नूतन लाल साहू
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